यूरेका-यूरेका, मिल गया. बहुत दिनो से जिसको मै खोज रहा था आज वह मिल गया. अँकल जी एक शख्शियत हैँ जो पूरे भारत को represent करते हैँ. ये हमेशा और हर जगह मौजूद रहते हैँ. अँकल जी जो केरल मे भी हैँ और बिहार मे भी. जो आसाम की गलियोँ मे भी रहते हैँ और बँगलोर के MG Road मे भी. जो भूत-प्रेत को भगाने वाले अनुष्ठान मे भी काम आते हैँ और मदहोश कर देने वाली पब के माहौल मे भी मौजूद रहते हैँ. जी हाँ, अँकल जी ही हैँ जो भारतीय के तन मन धन मे बस गए हैँ.
जी हाँ अग्रेजी के एक शब्द "अँकल" और हिन्दी के अलँकार से मिलकर बना यह शब्द हर जगह मौजूद है. इस शब्द का प्रयोग जितना होता आया है शायद ही उतना प्रयोग किसी और शब्द का किसी भी भाषा मे हुआ होगा. आप किसी भी गँजे अधेर आदमी को इस नाम से पुकार सकते हैँ. परम्परा ऐसी कि वह आदमी आपको oblige करेगा ही. आपका उम्र कुछ भी हो, आप राह चलते किसी भी आदमी से जिसके हाथ मे घड़ी लगा हो, अँकल जी कहकर आप समय पुछ सकते हैँ, आपको सही जानकारी मिलेगी. आप राह भटक गए हैँ, आपको कोई ना कोई अँकल जी मिल ही जाँएगेँ जो आपको सही राह दिखा देँगे. चाहे वह राह शहर का हो या कैरियर का.
यदि आप यूवा हैँ तो आपका प्रतियोगी जरूर आपके अँकल जी के घर मे रह रहे होँगे. ऐसा कोइ यूवा नही होगा जो इश्क फरमाने के लिए किसी ना किसी अँकल जी के घर नही गए होँ. ऐसा कोइ यूवा नहीँ जो किसी ना किसी अँकल जी के प्रकोपभाजन का शिकार नही हुए होँ. और ऐसा कोइ युवा नहीँ जिसको कोई ना कोइ अँकल प्रोत्साहित ना किया हो. आपके अँकल जी का बच्चा आपसे हमेशा होशियार होता है. वह हमेशा आपके लिए उदाहरण बनकर बैठा हुआ होता है. प्रत्येक माँ बाप को किसी ना किसी अँकल जी के बच्चे से इर्ष्या रहता है.
यदि आपका कोई काम अटक गया हो, आपके लिए कोई ना कोई अँकल जी मौजूद रहते हैँ. यदि आपको कोई सज्जन किसी भी प्रकार का सहायता किया हो तो आपका यह दायित्व बनता है कि आप उसे अँकल जी कह कर बुलाएँ. यदि आप उसे अँकल जी का दर्जा नही देते हैँ तो बोला जाएगा कि आपकी परवरिश ढँग से नही हुई है. जब आप अपने से एक पीढ़ी उँचे लोगोँ को सम्बोधित कर रहे होते हैँ, अपने वाक्योँ, कथनोँ को अँकल शब्द से जोड़ेँ. प्रत्येक पूर्णविराम, अर्द्धविराम, और अल्प विराम के बाद अँकल जी लगाना आपकी जिम्मेदारी बनता है, नही तो अपको अन्यथा लिया जाएगा. आप अँकल जी का प्रयोग कब और कहाँ करते हैँ उससे आपके सँस्कार का पता चलता है. और आपके सँस्कार का परीक्षण करने के लिए हर जगह कोई ना कोई अँकल जी मौजूद रहते ही हैँ.
भारत के प्रत्येक शादी व्याह और पार्टीयोँ मे अँकल जी मौजूद रहते हैँ. उन अँकल जी को उस प्रत्येक यूवा से चिढ़ होता है जो पार्टी मे यूवतीयों का सामीप्य चाहते हैँ. यदि इनको पता चल जाता है कि कोई यूवा किसी विपरीत लिँगी के नजदीक आया है तो ऐसे अँकल जी सिर्फ एक ही सवाल करते हैँ, "पढ़ाई लिखाई कैसा चल रहा है बेटा". ऐसे प्रत्येक अँकल जी को अपने जमाने का पढ़ाई अच्छा लगता है. यदि सँयोगवश आप पढ़ाई लिखाई मे अच्छे हैँ, तो ऐसे अँकल जी उन पार्टियोँ मे हर सँभव प्रयास करते हैँ कि प्रमाणित हो जाए कि आजकल का मानदण्ड नीचे हो गया है. उनको अपने जमाने की गणित, अँग्रेजी हमेशा ही आज की अपेक्षा मजबूत मालूम होता है. ऐसा कदाचित ही होता है कि यूवकोँ को पढ़ाई लिखाई का झाँसा देकर भगाने वाले ऐसे अँकल जी की वक्र नजरोँ से किसी यूवती शरीर बच गया हो. ऐसे प्रत्येक अँकलजी सुन्दर यूवती को "बेटा" कहकर बुलाते हैँ. और कम सुन्दर यूवती से ये अँकल लोग हमेशा शरमाते हैँ.
अँकल जी का प्रयोग आप अपने सुविधानुसार कर सकते हैँ. भारत के प्रत्येक भाषा आपको अधिकार देता है कि आप अपने सँस्कारित होने का परिचय अँकल शब्द के प्रयोग से कर सकते हैँ. साथ ही सभी भाषाओँ मे अँकल शब्द का प्रयोग आप बदला लेने के लिए भी कर सकते हैँ. मसलन यदि आपसे छोटा अपनी वाक्पटूता से छका गए होँ और आप बदला लेने के लिए छटपटा रहे होँ तो बस बोल दीजिए, "अँकल जी मै हार मान गया", देखिए कैसा असर करता हो. यदि आप कोई छोटा मोटा मजाक करना चाहते होँ अपने साथी को अँकल जी कह कर देखिए.
समय-काल और परिवेश से अँकल जी का स्वरुप बदलता रहता है. हिन्दीभाषी बीमारु राज्य मे जहाँ ये अपना वर्तमान स्थिति (अँकल जी) बनाए रखते हैँ. वहीँ तमिलनाडू मे आकर यह यँकल जी हो जाते हैँ. बँगलोर की गलियोँ मे जहाँ "एँकल जी के नाम से जाने जाते हैँ, वही केरल के बच्चे बहुत ही चाव से इन्हे "इँकल जी" बुलाते हैँ. माटी और पानी के बदलने से अँकल जी का स्वरुप बदल जाता है.
२६ जनवरी आने वाला है. हमलोग स्वतँत्रता और फिर सँप्रभुता की ६१वीँ वर्षगाँठ मनाने वाले हैँ. मैने भारतवर्ष के पिछले साठ साल मे हुए बदलाव के बारे मे लेखा जोखा लेने की कोशिश करने लगा. सोचा पिछले साठ साल मे हमने क्या उपलब्धि हाँसिल किया. दिमाग पचास के दशकोँ मे आनाज की कमी से लेकर चँद्रायन परियोजना तक गया, साइकिल की सवारी से मेट्रो तक गया, अँधविश्वास अश्पृयता से लेकर इन्फोरमेशन टेकनोलोजी तक गया. सोचा, दुनियाँ बहुत तरक्की कर गई तो हमने किया तो क्या किया. दुसरी बात ये कि, यदि हम गाँव जाकर देखेँ तो शहर की चकाचौँध से ये अभी भी कोसोँ दूर है. गाँधी जी आकर देखेँ तो उनको लगेगा, भारतीय सभ्यता वहीँ है जहाँ वह छोड़ कर गए थे. लेकिन अँकल जी अपने तमाम कन्ट्रोवर्सी के बावजूद देश को जोड़े हुए हैँ. कश्मीर से कन्याकुमारी, और बँगाल की खाड़ी से गुजरात तक प्रत्येक भाषा, जाति, धर्म और वर्ग के लोगोँ मे ये विद्यमान रहकर अनेकता मे एकता का परिचय देते हैँ.
मुझे मालूम है, हिन्दी ब्लोग्स मे भी कुछ अँकल जी हैँ. सभी से यही अर्ज करुँगा, "अँकल जी, एक टिप्पणी आप इस ब्लोग पर भी दे देँ". वे सभी लोग जो आज तक इस ब्लोग को पढ़ने बावजूद भी टिप्पणी नही देते हैँ, "मैँ उनको बोलूँगा, अँकल जी, थोड़ा तो रहम करो. बच्चे की जान लेने से पहले टिप्पणी तो दे दो. और उन सभी लोगोँ को जो टिप्पणी देते आएँ मै यही बोलूँगा, "बँधूओ, मुझे आशा है आप मुझे अँकल कहने का मौका नही देँगे, कृपया एक टिप्पणी तो दे ही देँ".
BAKAVAAS bhi itani achhi ho sakti he kya???
ReplyDelete'अंकल जी' !! मजा आ गया ...
ReplyDelete'अंकल जी' !! मजा आ गया ...
ReplyDelete'अंकल जी' !! मजा आ गया ...
ReplyDeleteवाह अंकल क्या बकवास लिखि है मजा आ गया जीयो !
ReplyDeleteवाह अंकल क्या बकवास लिखि है मजा आ गया जीयो !
ReplyDeleteWaha Uncle aapne Uncle pe Bakwas padwaa ke mera din banaa diyaa hai ....
ReplyDeleteUncle ji Bakwas ke liye Dhanyawad......