लगभग डेढ़ साल हो गए अपने इस छोटे से चिट्ठा पर कुछ शोभनीय वा अशोभनीय डालने हेतु अपने लैप-टाप के की बोर्ड पर ऊँगलियाँ टपर टपर करते हुए. मैने अपने प्रोफाइल मे बता रखा हूँ .... कि जब से कलम ने साथ निभाना छोड़ा है की बोर्ड पर ऊँगलियाँ यूँ ही टपर टपर टपर करती हैँ. इसी प्रोफाईल से ध्यान आया आखिर कलम ने साथ निभाना क्योँ छोड़ दिया और छोड़ ही दिया तो मेरी दुनियाँ कितनी प्रभावित हुई है.
फिर मै सोचने लगा आखिरी बार मैने कब कलम प्रयोग किया था ?? हाँ डेढ़ साल पहले किसी को चिट्ठी लिखा था. अब मुआ... इस जमाने मे चिट्ठी आदमी कलम सe क्योँ कर लिखने लगा. अजी बात ही ऐसी थी. रहा नही गया सो चिट्ठी लिख दिया. सो चिट्ठी लिखे डेढ़ साल... इम्तहान दिए तीन साल... डायरी लिखे हुए 5 साल हो गए... तो आखिरी बार मैने कलम का प्रयोग किया कब था...?? दिमाग पर जोर डाला तो याद आया कि अभी तीन दिन पहले अपने मोबाईल को रीचार्ज करवाया था. पैसा अपने क्रेडिट कार्ड से चुकाया था और दुकानदार ने स्वीक्रीतिनामा पर मेरा हस्ताक्षर करवाया था. और उससे पहले ..... फिर याद आया कुछ एक सप्ताह पहले चेकबुक पर हस्ताक्षर किया था.समय बदला, दुनियाँ बदल गई और इसा दुनियाँ मे रहने वाले लोग. इस बदली हुई दुनियाँ मे कलम का क्या औकात ?? कलम की जगह की-बोर्ड ने ले लिया. कलम का प्रयोग केवल हस्ताक्षर करने तक मे सिमट कर रह गया है. कलम अपने सुन्दर सुन्दर लिखाबटोँ के द्वारा लोगों को एक अभिन्न पहचान देती थी... आज अपने पहचान बचाने के लिए लोगोँ से गुहार लगा रही है.
फिर मै सोचने लगा आखिरी बार मैने कब कलम प्रयोग किया था ?? हाँ डेढ़ साल पहले किसी को चिट्ठी लिखा था. अब मुआ... इस जमाने मे चिट्ठी आदमी कलम सe क्योँ कर लिखने लगा. अजी बात ही ऐसी थी. रहा नही गया सो चिट्ठी लिख दिया. सो चिट्ठी लिखे डेढ़ साल... इम्तहान दिए तीन साल... डायरी लिखे हुए 5 साल हो गए... तो आखिरी बार मैने कलम का प्रयोग किया कब था...?? दिमाग पर जोर डाला तो याद आया कि अभी तीन दिन पहले अपने मोबाईल को रीचार्ज करवाया था. पैसा अपने क्रेडिट कार्ड से चुकाया था और दुकानदार ने स्वीक्रीतिनामा पर मेरा हस्ताक्षर करवाया था. और उससे पहले ..... फिर याद आया कुछ एक सप्ताह पहले चेकबुक पर हस्ताक्षर किया था.समय बदला, दुनियाँ बदल गई और इसा दुनियाँ मे रहने वाले लोग. इस बदली हुई दुनियाँ मे कलम का क्या औकात ?? कलम की जगह की-बोर्ड ने ले लिया. कलम का प्रयोग केवल हस्ताक्षर करने तक मे सिमट कर रह गया है. कलम अपने सुन्दर सुन्दर लिखाबटोँ के द्वारा लोगों को एक अभिन्न पहचान देती थी... आज अपने पहचान बचाने के लिए लोगोँ से गुहार लगा रही है.
सही कहते हैं पद्मनाभ जी, क्रेडिट कार्ड के बिल्स और कुछेक चेक्स काटने के अलावा, याद भी नही आता की कलम का उपयोग ठीक से आखिरी बार कब किया था ।
ReplyDeletevery well written gju :-))
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