दो साल से खामोशी बरकरार रखने के बाद बकवास का ये दूसरा खेप है. लेकिन अभी तक ये अपने बीटा सँस्करण से आगे नहीँ बढ़ पाया है. इस दूसरे खेप मे मै टीवी पत्रकारोँ की बाट नही लगाउँगा. अब उनका स्तर इस ब्लोग से नीचे गिर गया है. सच्ची ! बकवास अपने आप मे एक परिपूर्ण विधा है. और पत्रकारोँ को बाट लगाने से ही केवल, बकवास फल फूल नही सकता है. लेकिन बकवास के इस द्वितीय सँस्करण को कहीँ ना कहीँ से शुरु करना है. बहुत देर से सोच रहा था क्या लिखूँ...? तो याद आया क्योँ नही अपने अमेरिका प्रवास के बारे मे ही लिखूँ. इस बार के मै अपने अमेरिका प्रवास मे तीन जगह गया हूँ. दो शहर अभी और बाँकी है. अगले दो सप्ताह मे काम निपटा के जल्दीए लौटते हैँ. ये सब मिलाकर मेरा पाँचवाँ प्रवास है, मै जब भी यहाँ आया हूँ, कुछ ना कुछ मुझे अजीबे देखने को मिला है. अक्टूबर मे अन्तिम सप्ताह मे किसी भी पश्चिमी देश मे रहने का ये पहला अवसर है. हमेशा की तरह इस बार भे अजीब अजीब चीजेँ देखने को मिल रही है.
प्रत्येक साल अक्टूबर महीने के अन्तिम सप्ताह से अमेरिका मे त्योहारोँ का दौर शुरु हो जाता है. पहला त्योहार आता है हैलोविन, फिर थैन्क्स गिविँग और उसके बाद क्रिश्मस और नया साल. आपने हैलोविन के अलावा सभी त्योहारोँ का नाम सुन रखा होगा. और आपको ये जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि हैलोविन एक ऐसा त्योहार है जिसमे अमेरिकन लोग भूत-प्रेतोँ की पूजा (झाड़-फूक) करते हैँ. यदि सँस्कारित शब्दोँ मे बोलेँ तो यह पूजा करना ही है लेकिन यदि असलियत मे बोलेँ तो यह झाड़ फूक से ज्यादा कुछ नही है. और इस झाड़ फुक के लिए आफिस से बकायदा छुट्टी मिलता है. लेकिन अमेरिकन ठहरे पहले दुनियाँ के लोग. वो ये बात कैसे मानेँगे कि अमेरिका मे भूत प्रेत और जादू टोना होता है. और प्रत्येक चीज मे इन्जोय करने का उनका आदत है, तो भूत-प्रेत के झाड़-फूक से भे ये लोग मस्ती करना नही भूलते. और बात यहाँ तक बढ़ जाता है कि लोग हैलोविन का असली मकसद भूल जाते हैँ.
मैने लिटरेचर खँगालने की कोशिश किया कि आखिर बात क्या है? तो पाया कि, प्राचीन समय से हैलोविन त्योहार के समय मरे हुए लोगोँ की आत्मा को शाँत करने के लिए ऐसा पूजा किया जाता है.
विकीपीडिया के अनुसार "यह एक ऐसी अवधारणा है जिसमे यह माना जाता है कि अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह मे इस पृथ्वी लोक मे और स्वर्ग-नरक लोक मे दूरी कम हो जाती है. ये दूरी इतनी कम हो जाती है कि स्वर्ग लोक से अपने अच्छे अच्छे पूर्वज के साथ नरक लोक के भूत, प्रेत और पिचाश पृथ्वी लोक पर विचरण करने लगते हैँ. अमेरिकन लोग अपने पूर्वजोँ के आत्मा का तहे दिल से स्वागत करते हैँ और इसी खुशी मे इस हैलोविन को त्योहार की तरह मनाते हैँ, खुशियाँ मनाते हैँ. लेकिन भूत, प्रेत और पिचाशोँ को भगाने के लिए जादू टोना करते रहते हैँ.
जादू टोना के लिए तरह तरह का हरकत करते हैँ और इसमे सबसे बड़ा काम आता है कद्दू (pumpkin). काद्दू को काटकर उसमे आँख और मुँह के आकार का डिजायन बनाया जाता है. बाँकी चीजोँ को नारँगी और काले रँग से सभी चीजोँ को सजाया जाता है. प्रेतोँ और पिचासोँ को भगाने के लिए बच्चे बुढ़े अजीब अजीब रँग के कपड़े पहनते हैँ. हलाँकि अधिकतम डिजायन काले और नारँगी रँग से होता है.
पूरा व्यवस्था देखने से ऐसा लगता है कि अपने देश ही आ चुके होँ. अमेरिकन लोग भारतीय ओझा की तरह का कपड़ा पहनते हैँ. सभी लोगोँ मे होड़ लगी रहती है कि सबसे बदसूरत कौन दिखता है. ऐसा मानना है कि जितना बदसूरत दिखो बुरी आत्मा उतना ही दूर रहेगा. मैने अपने आफिस के बाहर आज देखा कि कुछ लोक बँगलोर के सिल्क बोर्ड किनारे जो बहुरुपिया होते है उसके जैसा कपड़े पहन रखे हैँ. एक समुह ऐसा था जो हाथो पर पट्टी मरहम और प्लास्टर जैसा कुछ करवा रखा है. बहुत सारे लोग आर्टिफिशियल बाल लगा रखे हैँ.
जब मानवता का विकास हो रहा था तो ऐसा नही है कि अमेरिका मे विकास दर बहुत तेजी से बढ़ा है. इन्टरनेट पर एक आर्टिकल पढ़ रहा था कि द्वितीय विश्व यूद्ध के समय अमेरिका ने परमाणु बम जरूर बना लिया था लेकिन मिरगी का इलाज आयोवा स्टेट यूनिवरसिटी के एजूकेशन विभाग का एक प्रोफेसर अपने झाड़-फूक से ही करता था बाइअबिल के सहयोग से.
आज का बकवास कैसा लगा टिप्पणी द्वारा बताइएगा.
बहुत अच्छी जानकारी!
ReplyDeleteमेरे लिये नई भी।
बेटा अमेरिका में है और वह कल ही हेलोविन के बारे में बता रहा था। पोता भी आज मिकी माउस बना है। उसी से बात करने की इंतजार कर रही हूँ और इस त्योहार के बारे में अधिक जानकारी लेने की कोशिश में आपकी पोस्ट पढ़ डाली। मनुष्य के अन्दर प्रकृति प्रदत्त एक डर है उसी डर को वह विभिन्न माध्यमों से बाहर निकालने का प्रयास करता है। यदि यही त्योहार भारत में हो तो हम पुरातन पंथी से नवाजे जाएंगे लेकिन अमेरिका में हैं तो बडा अच्छा है।
ReplyDeleteजादु-टोना दुनिया मे हमारे यहां से ही गया
ReplyDeleteअब अमेरिका मे फ़ल-फ़ुल रहा है,
हां आपके ब्लाग पर आने के बाद लिटी -चोखा की याद आ गई-एक साल हो गये खाए-अगर आप चोखा की नई रैसिपि भिजवा दे तो हम यह शुभ कार्य कल ही कर डालें-नाम पढने से ही मुंह मे स्वाद आने लग गया-लार बार-बार पोंछ्ना पड़ रहा है
बधाई हो-राम राम
अच्छी जानकारी.
ReplyDeleteवाकई अंधविश्वास के लिए हर कहीं जगह बच ही जाती है।
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स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।